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बासमती चावल

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

बतादें, कि तीव्रता से होते शहरीकरण की वजह से दून बासमती चावल विलुप्त हो रहा है। खबरों के मुताबिक, बीते सालों में इसकी खेती काफी घट गई है। दून बासमती, चावल की किस्म जो अपनी समृद्ध सुगंध और विशिष्ट स्वाद के लिए जानी जाती है। तेजी से लुप्त हो रही है।उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दून बासमती चावल की खेती का रकबा बीते पांच सालों में 62% प्रतिशत तक घट गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, दून बासमती चावल की पैदावार 2018 में जहां 410 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किया जा रहा था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा महज 157 हेक्टेयर तक सिमट गया है। यही नहीं इस खेती के सिकुड़ते क्षेत्रफल के कारण किसानों ने भी अपने हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया है। 2018 में 680 किसान दून बासमती चावल पैदा कर रहे थे। पांच सालों में 163 किसानों ने बासमती चावल की खेती बंद कर दी है।

दून बासमती चावल की सुगंध और स्वाद कैसा होता है ?

अपनी विशिष्ट कृषि-जलवायु परिस्थितियों की वजह से यह चावल दून घाटी के लिए स्थानिक महत्व रखता है। इसके अलावा, चावल की यह प्रजाति केवल बहते पानी में ही पैदा होती है। यह चावल की “बहुत ही नाजुक” किस्म है। यह पूरी तरह से जैविक रूप से उत्पादित अनाज है, रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग करने पर इसकी सुगंध और स्वाद खो जाता है। 

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दून बासमती, चावल की एक दुर्लभ किस्म होने के अतिरिक्त देहरादून की समृद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण भाग है। दून बासमती को दून घाटी में चावल उत्पादकों द्वारा विकसित किया गया था। दून बासमती चावल एक वक्त में बड़े क्षेत्रफल पर उगाया जाता था, जो अब एक विशाल शहरी क्षेत्र के तौर पर विकसित हो चुका है। अब दून बासमती चावल की खेती उंगलियों पर गिने जा सकने वाले कुछ ही क्षेत्रों तक ही सीमित है।

यह किस्म बड़ी तीव्रता से विलुप्त हो रही है 

तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण घटती कृषि भूमि जैसे कई कारणों से चावल की विशिष्ट किस्म तीव्रता से विलुप्त हो रही है। विपणन सुविधाओं का अभाव और सब्सिडी न मिलने जैसी वजहों ने दून बासमती चावल को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया हैं। बासमती चावल की विभिन्न अन्य प्रजातियां दून बासमती के नाम पर बेची जा रही हैं। दून बासमती के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। 

जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। 

और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। 

यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

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रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। 

इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

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 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। 

इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

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इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। 

उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। 

पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

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 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। 

जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

भारत सरकार के सामने नई चुनौती, प्रमुख फसलों के उत्पादन में विगत वर्ष की अपेक्षा हो सकती है कमी

भारत सरकार के सामने नई चुनौती, प्रमुख फसलों के उत्पादन में विगत वर्ष की अपेक्षा हो सकती है कमी

फिलहाल भारत सरकार के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है, इस साल खरीफ और रबी की फसलों में भारी कमी होने की संभावना है, इसका कारण है कई जगहों पर वर्षा की असमानता। इस साल कई राज्यों के कई क्षेत्रों में या तो औसत से ज्यादा बरसात हुई है या औसत से बहुत कम वर्षा हुई है, जिसका असर सीधा फसलों के उत्पादन में पड़ रहा है। औसत से ज्यादा बरसात वाले क्षेत्रों में फसलें बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं, कई जगह फसलें सड़ के पूरी तरह से चौपट हो गई हैं, तो कई जगह सूखे की वजह से फ़सलों की वैसी ग्रोथ नहीं हुई है जैसी उम्मीद की जा रही थी। हरियाणा और पंजाब में कम बरसात की वजह से एक बहुत बड़े रकबे की धान की खेती अविकसित रह गई है। इसलिए नीति निर्माताओं का अनुमान है कि 2022-23 में प्रमुख फसलों के उत्पादन में भारी कमी आ सकती है, जिसका असर भारत के सामान्य लोगों पर पड़ेगा। अगर तय लक्ष्य के मुताबिक़ फसलों का उत्पादन नहीं हुआ तो बाजार में अनाज की कमी हो जाएगी, जिससे खाने पीने की चीजों के दाम में बढ़ोत्तरी हो सकती है, जो सरकार के लिए एक नया सिरदर्द है। सरकार को इससे निपटने के लिए जल्द से जल्द योजना बनाने की जरुरत है।

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यूपी, बिहार, गंगीय पश्चिम बंगाल और झारखंड में इस साल बेहद कम बरसात हुई है, जिसका असर खरीफ की खेती पर पड़ना तय है। यह क्षेत्र चावल के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इस साल कम वर्षा के कारण यहां पर चावल के उत्पादन में भारी कमी हो सकती है, इस सीजन में इन राज्यों में कम से कम 11 मिलियन टन चावल के उत्पादन में कमी हो सकती है। पिछले साल इन राज्यों में चावल का कुल उत्पादन 111.8 मिलियन टन था, इस साल घटकर 100-102 मिलियन टन होने की संभावना है, इसको देखते ही सरकार पहले से ही अलर्ट हो गई है, इसलिए सरकार ने पहले गैर-बासमती चावल निर्यात  (chawal niryat) पर प्रतिबन्ध लगाया उसके बाद टुकड़ा चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। चावल के अतिरिक्त कपास के उत्पादन में भी भारी कमी की संभावना है, क्योंकि इस खेती में भी असमान वर्षा और मौसम की मार पड़ी है, जिससे कपास की खेती भी प्रभावित हुई है। कपास के उत्पादन में कमी घरेलू कपड़ा उद्योग को प्रभावित करेगी। उत्पादन की कमी के कारण बाजार में कपास महंगा हो सकता है जिसका सीधा असर कपड़ा बनाने में आने वाली लागत पर पडेगा। आगामी वर्ष में कपड़ा उत्पादन की लागत बढ़ भी सकती है।

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कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस साल कपास का उत्पादन तय लक्ष्य से लगभग 35 लाख गांठ कम हो सकता है, जो एक चिंता का विषय है। भारत सरकार के लक्ष्य के अनुसार इस साल कपास का उत्पादन 370 लाख गांठ होना चाहिए था। लेकिन अब इसके 335-345 लाख गांठ होने की संभावना है, जो लक्ष्य से काफी कम है। बाजार में कपास की मांग में हुई अप्रत्याशित वृद्धि के हिसाब से कपास का उत्पादन नहीं हो रहा है जिसका नकारात्मक प्रभाव सीधे कपड़ा उद्योग पर दिखेगा। इस साल वस्त्रोद्योग के लिए कपास की उपलब्धता सीमित हो सकती है। असमान्य वर्षा और मौसम की मार का असर दलहन की फसलों पर भी पड़ा है। भारत में ऐसा कई बार हो चुका है जब मौसम की मार के कारण दलहन की फसलें खराब हो चुकी हैं और जिसके कारण दालें सामान्य लोगों की थाली से गायब हो गईं थीं, क्योंकि इस दौरान दालों के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई। वैसी ही स्थित इस बार भी निर्मित हो सकती है, क्योंकि दलहन की फसल इस बार बुरी तरह से प्रभावित हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बार दलहन की फसलों का उत्पादन अपने तय लक्ष्य 10.5 मिलियन टन से काफी कम हो सकता है, जिसकी वजह से भारत सरकार को बाजार में सुचारू रूप से सप्प्लाई जारी रखने के लिए चुनौती का सामना करना होगा। इसके लिए हो सकता है कि भारत को लगभग 30 लाख टन दालों का आयात करना पड़े। भारत सरकार के द्वारा दालों का आयत करना कोई नया मामला नहीं है। अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पहले भी दालों का आयात करता रहा है।

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देश में निर्मित हो रही इन सभी परिस्तिथियों का असर तिलहन पर भी पड़ना तय है। अन्य फसलों की तरह तिलहन के उत्पादन में भी कमी का अनुमान है। जिसका असर भारतीय बाजार पर होगा। पिछले कुछ सालों से खाद्य तेलों की कीमतों में अप्रत्याशित रूप से उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है जो इस साल भी जारी रह सकता है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार इस साल तिलहन का उत्पादन 21.5-22.5 मिलियन टन होने का अनुमान है जो तय लक्ष्य से लगभग 5 मिलियन टन कम है। भारत सरकार ने इस साल देश में 26.9 मिलियन टन तिलहन के उत्पादन का लक्ष्य रखा था, जो पिछले साल हुए उत्पादन से 3 मिलियन टन ज्यादा था। पिछले साल देश में लगभग 23.9 मिलियन टन तिलहन का उत्पादन हुआ था। यह पहली बार नहीं है जब भारत को तिलहन के उत्पादन में कमी का सामना करना पडेगा। पहले भी भारत में ऐसा हो चुका है, जिसकी भरपाई के लिए सरकार बड़ी मात्रा में खाद्य तेल का आयात करती है ताकि भारत के बाजार में खाद्य तेल की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके और खाद्य तेल की कीमतों को कंट्रोल में रखा जा सके।

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कुल मिलाकर देखा जाए तो असमान्य वर्षा और मौसम की मार की वजह से ज्यादातर फसलों के उत्पादन में कमी होने की सम्भावना है। जिसका सीधा असर बाजार में चीजों की उपलब्धता पर पडेगा, हो सकता है कि इसके कारण खाद्य चीजों के साथ वस्त्रों जैसी मूलभूत चीजों के दामों में भी उतार चढ़ाव देखने को मिले। हालांकि अभी से सितम्बर के बाद आने वाले मौसम की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। अगर मौसम करवट लेता है तो उसका असर आने वाली फसलों पर जरूर पडेगा, जिससे उत्पादन में कमी या वृद्धि होना संभव है।
अगर आप भी चावल में मिलावट कर उसे बेच रहे हैं तो सावधान हो जाइए

अगर आप भी चावल में मिलावट कर उसे बेच रहे हैं तो सावधान हो जाइए

भारत में उगाए जाने वाले बासमती चावल का पूरी दुनिया में डंका बजता है। अगर पिछले साल की बात की जाए तो साल 2022-23 में बासमती चावल का निर्यात 24.97 लाख टन दर्ज किया गया है। अमेरिका और यूरोप में तो भारत के बासमती चावल की डिमांड है ही इसके साथ-साथ अरब के देशों में भी भारत से बासमती चावल मंगवाए जाते हैं। यही कारण है, कि पिछले कुछ समय में ना सिर्फ भारत चावल का सबसे बड़ा उत्पादक देश रहा है। बल्कि हम पूरे विश्व में बहुत ही बड़े स्तर पर चावल का निर्यात भी करते हैं। भारत की तरफ से हमेशा कोशिश की जाती है, कि पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय बाजार मानकों के आधार पर खरा उतरने के बाद ही बासमती चावल का निर्यात किया जाए। लेकिन आजकल बहुत से व्यापारी और चावल वितरित करने वाली कंपनियां नकली बासमती चावल बेच रही हैं। इस तरह की गड़बड़ी करते हुए अपनी नोटों से जेबें भर रहे हैं। ऐसी गैर-कानूनी गतिविधियों पर अब भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी FSSAI ने लगाम कस दी है। अगर रिपोर्ट्स की मानें तो FSSAI ने बासमती चावल की क्वालिटी और स्टैंडर्ड के लिए खास नियम तय कर दिए हैं, जिनका पालन चावल कंपनियों को करना ही होगा। ये नियम 1 अगस्त 2023 से देशभर में लागू हो जाएंगे। नियमों का पालन न किए जाने पर व्यापारियों और कंपनियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जाएगी।

अब बाज़ार में बिकेगा केवल नेचुरल बासमती चावल

असली बासमती चावल में अपनी खुद की एक प्राकृतिक सुगंध होती है। लेकिन आजकल कई कंपनियां आर्टिफिशियल कलर और नकली पॉलिश करते हुए बासमती चावल में बाहर से एक अलग खुशबू डाल देती हैं। इस तरह के नकली चावल देशभर में बेचे जा रहे है। लेकिन अब सरकार ने इस कुकर्म पर लगाम लगाने की ठान ली है। ऐसी कंपनियों पर लगाम कसते हुए अब भारत सरकार के बजट में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड (फूड प्रोडक्ट स्टैंडर्ड एंड फूड एडिटिव) फर्स्ट अमेंडमेंट रेगुलेशन 2023 नोटिफाई किया गया है।


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इसमें बासमती चावल के लिए खास स्टैंडर्ड निर्धारित किए गए हैं, ताकि असली बासमती की पहचान, सुगंध, रंग और बनावट के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। नए नियमों में ब्राउन बासमती, मिल्ड बासमती, पारबॉइल्ड ब्राउन बासमती और मिल्ड पारबॉइल्ड बासमती चावल को प्रमुखता से जोड़ा गया है। इन खास तरह के स्टैंडर्ड का पालन न करने पर कंपनियों के खिलाफ सरकार की तरफ से लीगल एक्शन लिया जा सकता है।

किसे कहेंगे असली बासमती चावल

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी FSSAI द्वारा निर्धारित रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स के अनुसार, असली बासमती चावल वही होगा, जिसमें प्राकृतिक सुगंध होगी। साथ ही, इन नियमों के तहत बासमती चावल को किसी भी तरह से आर्टिफिशियल पॉलिश नहीं किया जाएगा। जो भी कंपनियां बासमती चावल बेच रही हैं, उन्हें पकने से पहले और पकने के बाद के चावल का आकार निर्धारित करना होगा। इसके अलावा चावल कंपनियों को बासमती चावल में नमी की मात्रा, एमाइलॉज की मात्रा, यूरिक एसिड के साथ-साथ बासमती चावल में टुकड़ों की उपस्थिति और इनकी मात्रा की पूरी जानकारी देनी होगी।

1 अगस्त से लागू हो जाएंगे नियम

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा बासमती चावल के लिए निर्धारित रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स 1 अगस्त 2023 से लागू हो जाएंगे। इन नियमों का सबसे बड़ा मकसद बासमती चावल में हो रही मिलावट को खत्म करना है। साथ ही, ग्राहकों के हितों की रक्षा देश नियम के तहत की जाएगी। यहां पर सरकार का मकसद है, कि आपके खाने की थाली में एकदम वैसे ही चावल पहुंच सके जैसा उन्हें उगाया गया है।
हर किसान के घर-घर पहुंचेगी पंजाब सरकार, 31 मार्च तक तैयार हो जाएगी नीति

हर किसान के घर-घर पहुंचेगी पंजाब सरकार, 31 मार्च तक तैयार हो जाएगी नीति

आजकल हमारे देश में एग्रीकल्चर ग्रोथ (Agriculture Growth) को लेकर बढ़ा चढ़ाकर प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत सभी राज्य किसानों की खेती-बाड़ी को प्रोत्साहित करते हैं। भारत में पंजाब एक ऐसा राज्य है, जो हमेशा से ही अपने लहलहाते खेतों और फसलों के लिए अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखता है। पंजाब की काफी ज्यादा आबादी कृषि से जुड़ी हुई है और इसीलिए यहां कि राज्य सरकार किसानों की मदद करने के लिए समय-समय पर कृषि से जुड़ी हुई कोई ना कोई योजनाएं आती रहती है।

पंजाब में 31 मार्च तक तैयार होगी नई कृषि नीति

पंजाब सरकार काफी समय से किसानों को समृद्ध बनाने के लिए और कृषि के और ज्यादा उन्नत तरीके अपनाने के लिए प्रयासरत रही है। फिलहाल राज्य सरकार पंजाब के लिए नई कृषि नीति तैयार करने में लगी हुई है। 31 मार्च तक कृषि नीति के पूरा हो जाने की तिथि दी गई है। पंजाब सरकार किसानों को समृद्ध बनाने और कृषि क्षेत्र को उन्नत करने के लिए लगातार कदम उठा रही है।
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रिपोर्ट की मानें तो इस बार पंजाब सरकार पूरी तरह से ग्राउंड लेवल पर काम करना चाहती है और अपनी नीतियों में इस तरह से बदलाव करेगी कि वह हर एक किसान से सीधे तौर पर जुड़ सकें। नई कृषि नीति को लेकर पंजाब सरकार ने नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। इससे जुड़े हुए सदस्यों की लिस्ट भी जारी कर दी गई है। यह नीति बनाने के लिए 11 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई है। राज्य सरकार के अनुसार, कमेटी में सचिव कृषि राहुल तिवारी को मैंबर, चेयरमैन पंजाब राज्य किसान और कृषि श्रमिक आयोग डॉ. सुखपाल सिंह को कनवीनर, वाइस चांसलर पी.ए.यू. लुधियाना डॉ. एस.एस. गोसल, वाइस चांसलर गुरु अंगद देव वेटरिनरी एंड एनिमल साईंसेज यूनिवर्सिटी लुधियाना डॉ. इंद्रजीत सिंह, अर्थशास्त्री डॉ. सुच्चा सिंह गिल, पूर्व वाइस चांसलर पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला डॉ. बी.एस. घुम्मण, पूर्व डॉयरैक्टर बागबानी पंजाब डॉ. गुरकंवल सिंह, सलाहकार पंजाब जल नियंत्रण और विकास अथॉरिटी राजेश वैशिष्ट, पूर्व डॉयरैक्टर कृषि पंजाब डॉ. बलविन्दर सिंह सिद्धू, प्रधान पी.ए.यू. किसान क्लब अमरिंदर सिंह और चेयरमैन पनसीड महेंद्र सिंह सिद्धू आदि को सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है।

किस क्षेत्र में करेगी सरकार काम

पंजाब के कृषि मंत्री ने बताया कि, पंजाब सरकार कृषि में ग्रोथ के लिए कई बिंदुओं पर काम करेगी। इनमें जमीनी पानी, मिट्टी की सेहत और भौगोलिक स्थितियों को प्रमुख रूप से ध्यान रखा गया है। माना जा रहा है, कि नई कृषि नीति लागू होते हैं किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आएगा और साथ ही कृषि पैदावार में भी गुणवत्ता, निर्यात और कृषि विभिन्नता बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा।

बासमती चावल के निर्यात को तैयार होगी नई रणनीति

पूरे पंजाब में बासमती चावल उगाया जाता है और ऐसा कहा जाता है कि यह चावल पंजाब की पहचान है। यहां पर बासमती चावल काफी ज्यादा मात्रा में उगाया जाता है। इस बासमती चावल को वैश्विक पटल पर चमकाने के लिए राज्य सरकार काम कर रही है। इस नई कृषि नीति में बासमती को परमल धान के विकल्प के तौर पर अपनाने और बासमती निर्यात को प्रोत्साहित करने के प्रस्ताव के रूप में भी शामिल किया जाएगा।
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जहर मुक्त कृषि मॉडल देगी पंजाब सरकार

पंजाब सरकार का कहना है, कि पंजाब में पर्यावरण को लेकर काफी समस्याएं सामने आ रही हैं। केमिकल आदि से तैयार की गई फसने खाने से लोगों की सेहत पर सीधा असर पड़ रहा है और साथ ही यह सभी चीजें पर्यावरण को भी पूरी तरह से प्रभावित करती हैं। जमीन की उर्वरकता घटी है। उपजाऊ भूमि अब गैर-उपजाऊ भूमि में बदल रही है। जमीन का पानी जहरीला हो रहा है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने जहर मुक्त कृषि मॉडल लाने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।
प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी गंभीर हो गया है, FSSAI ने इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी की हैं

प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी गंभीर हो गया है, FSSAI ने इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी की हैं

जानकारी के लिए बतादें कि मिलावटी बासमती चावल का यह मु्द्दा अब काफी ज्यादा उठ चुका है। इसके लिए फिलहाल FSSAI मतलब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा गाइडलाइन भी जारी कर दी गई हैं। भारत में आप उत्तर से लेके दक्षिण तक नजर डालोगे तो आपको रोटी से अधिक चावल को पसंद करने वाले लोग मिल जाएंगे। भारत में चावल की बहुत सारी प्रजातियां उपस्थित हैं। परंतु, सर्वाधिक बासमती चावल को पसंद किया जाता है। बासमती चावल की मांग वर्ष भर भारत में बनी रहती है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है, कि यहां घरों में तो ये चावल बनता ही है, इसके साथ-साथ कोई भी कार्यक्रम हो उसमें भी लोग बासमती चावल ही बनाना पसंद करते हैं। इसी का लाभ उठा कर मिलावट खोर वर्तमान में इसमें मिलावट करने लग गए हैं। आइए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि कैसे आप असली और नकली बासमती चावल की पहचान कर सकते हैं।

प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी अहम बन चुका है

जैसा से कि हम जानते हैं, कि मिलावटी बासमती चावल का मु्द्दा इतना ज्यादा उठ चुका है, कि वर्तमान में इसको लेके FSSAI मतलब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा गाइडलाइन भी जारी कर दी गई है। FSSAI के अनुसार, अगस्त 2023 से सभी को इस गाइडलाइन को मानना आवश्यक होगा। इसके लिए विशेष क्वालिटी और स्टैंडर्ड से जुड़े नियम जारी किए गए हैं। इन नियमों के अंतर्गत चावल की पहचान होगी, जो चावल इन मानकों पर उपयुक्त नहीं होंगे उनके मालिकों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

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प्लास्टिक वाले चावल की क्या पहचान होती है

प्लास्टिक वाले चावल बनते कैसे हैं। इस सवाल से पहले यह जानने की आवश्यकता है, कि प्लास्टिक के चावल बनते कैसे हैं। दरअसल, प्लास्टिक वाले बासमती चावल को बनाने हेतु मिलावटखोर कंपनियां प्लास्टिक और आलू का उपयोग करती हैं। यह चावल दिखने में और सुगंध में आम चावल की ही भांति होता है। परंतु, यह पूर्णतया नकली होता है और शरीर के लिए काफी ज्यादा हानिकारक भी होता है। इसकी पहचान करने का सबसे सुगम तरीका इसका स्वाद होता है। साथ ही, यदि आप इस चावल को धुलते हैं, तो आम चावल की भांति इसका पानी उतना सफेद नहीं होता है। वहीं, यदि आप इस चावल को थोड़े समय के लिए भिगो देंगे तो यह रबड़ की भांति हो जाएगा।

असली बासमती चावल किस तरह का दिखाई पड़ता है

असली बासमती चावल को आप उसकी गंध से ही पहचान सकते हैं। तो वहीं यह चावल आम चावलों की तुलना में अधिक लंबे होते हैं। इन चावलों की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका इनका सिरा होता है। जब आप असली बासमती चावलों को देखेंगे तो आपको उनके सिरे काफी नुकीले दिखाई देंगे। इसके साथ ही यह चावल बनते वक्त एक दूसरे से चिपकते नहीं हैं।
भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। दरअसल, भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। भारत से बहुत सारे देशों में चावल की आपूर्ति होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। विशेष रूप से उन देशों में जो चावल के लिए प्रत्यक्ष तौर पर भारत पर आश्रित हैं। सामान्य तौर पर भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। बतादें, कि से अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका समेत एशिया महादेश के भी बहुत सारे देशों में चावल का निर्यात किया जाता है।

केंद्र सरकार ने चावल के निर्यात पर लगाया प्रतिबंध

जानकारों ने बताया है, कि भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर रोकथाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने नॉन बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है। क्योंकि चावल भारत में अधिकांश लोगों का भोजन है। सबसे विशेष बात यह है, कि भारतीय लोग नॉन बासमती चावल का ही सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। यदि नॉन बासमती चावल का निर्यात सुचारू रहता तो, इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती थी। ऐसे में आम जनता का पेट भरना मुश्किल हो जाता। यही वजह है, कि केंद्र सरकार ने कुछ दिनों के लिए नॉन बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। ये भी पढ़े: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

नेपाल में इस वजह से बढ़ने वाले चावल के दाम

भारत से सर्वाधिक नॉन बासमती चावल का निर्यात चीन, नेपाल, कैमरून एवं फिलीपींस समेत विभिन्न देशों में होता है। अगर यह प्रतिबंध ज्यादा वक्त तक रहता है, तो इन देशों में चावल की किल्लत हो सकती है। विशेष कर नेपाल सबसे ज्यादा असर होगा। क्योंकि, नेपाल भारत का पड़ोसी देश है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार से इसकी सीमाएं लगती हैं। फासला कम होने के कारण नेपाल को यातायात पर कम लागत लगानी पड़ती है। अगर वह दूसरे देश से चावल खरीदता है, तो निश्चित तौर पर निर्यात पर अत्यधिक खर्चा करना पड़ेगा। इससे नेपाल पहुंचते-पहुंचते चावल की कीमतें बढ़ जाऐंगी, जिससे महंगाई में भी इजाफा हो सकता है।

भारत ने बीते वर्ष टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था

बतादें, कि ऐसा बताया जा रहा है, कि गैर- बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाए जाने से भारत से निर्यात होने वाले करीब 80 फीसदी चावल पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, केंद्र सरकार के इस कदम से रिटेल बाजार में चावल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। साथ ही, दूसरे देशों में कीमतें बढ़ जाऐंगी। एक आंकड़े के अनुसार, विश्व की तकरीबन आधी आबादी का भोजन चावल ही है। मतलब कि वे किसी न किसी रूप में चावल खाकर ही अपना पेट भरते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन लोगों के लिए चिंता का विषय है। बतादें, कि विगत वर्ष भारत ने टूटे हुए चावल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगे बैन को लेकर कई देशों ने सवाल खड़े किए

भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगे बैन को लेकर कई देशों ने सवाल खड़े किए

भारत बहुत बड़े पैमाने पर चावल निर्यात करने वाला देश है। निर्यात पर लगाम लगाने के फैसले को लेकर कनाडा, अमेरिका समेत कई सारे देशों ने सवाल खड़े किए थे। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कहा है, कि चावल के निर्यात पर लगाए गए रोक को प्रतिबंध नहीं मानना चाहिए। यह सिर्फ एक विनियम है। यह भारत के 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। यूक्रेन-रूस संकट के दौरान भारत ने 20 जुलाई को गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे घरेलू आपूर्ति को प्रोत्साहन मिले एवं खुदरा कीमतों को काबू में किया जाएगा। भारत के इस निर्णय पर कनाडा एवं अमेरिका समेत कई सारे देशों ने सवाल खड़े किए थे।

भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखकर फैसला लिया

विश्व व्यापार संगठन की समिति की जिनेवा में हुई बैठक के समय भारत की तरफ से कहा गया कि यह फैसला खाद्य सुरक्षा को मद्देनजर रखकर लिया गया है। भारत की तरफ से बताया गया है, कि वैश्विक परिस्तिथियों को मद्देनजर रखते हुए दिग्गजों को बाजार की स्थितियों में हेरफेर करने से प्रतिबंध करने के लिए इस फैसले के विषय में डब्ल्यूटीओ में अग्रिम सूचनाएं नहीं दी गई। इस बात की संभावना थी, अगर इससे जुडी जानकारी पहले दी जाएगी तो बड़े आपूर्तिकर्ता भंडारण करके दबाकर हेरफेर कर सकते थे। ये उपाय अस्थायी हैं एवं घरेलू मांग तथा आपूर्ति स्थितियों के आधार पर नियमित तौर से समीक्षा में जुटी हुई है।

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भारत की तरफ से जरूरतमंद देशों को निर्यात की स्वीकृति

भारत की तरफ से यह भी कहा गया है, कि प्रतिबंध के बावजूद जरूरतमंद देशों को भारत ने पूर्व में ही निर्यात की मंजूरी दी है। एनसीईएल के माध्यम से भूटान (79,000 टन), यूएई (75,000 टन), मॉरीशस (14,000 टन) एवं सिंगापुर (50,000 टन) को गैर-बासमती चावल का निर्यात किया गया है।

भारत द्वारा चावल निर्यात पर रोक को लेकर इन देशों ने उठाए सवाल

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 40 प्रतिशत से अधिक वैश्विक निर्यात के साथ भारत विश्व भर का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। भारत के निर्यात पर प्रतिबंध वाले निर्णय को लेकर ब्राजील, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, थाईलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने बहुत सारे सवाल खड़े किए थे। इन देशों की ओर से कहा गया था, कि कृषि वस्तुओं के आयात पर बहुत ज्यादा आश्रित रहने वाले देशों पर इसका प्रभाव पड़ता है।
देश भर की मंडियों में धान की कीमतें सातवें आसमान पर पहुँच गई हैं

देश भर की मंडियों में धान की कीमतें सातवें आसमान पर पहुँच गई हैं

धान की बढ़ती कीमतों का आंकलन आप इस बात से कर सकते हैं की भारत की बहुत सारी मंडियों में धान 7 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है। जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से लगभग तीन गुना अधिक है। भारत की समस्त मंडियों का भाव जानें।  भारत भर की मंडियों में धान की आवक जारी है। इसी मध्य धान के भाव में फिर तेजी देखने को मिली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में निरंतर बढ़ रही मांग के चलते धान की कीमतों में विगत एक माह से तेजी बनी हुई है। आलम यह है, कि बहुत सारी मंडियों में धान न्यूनतम समर्थन मूल्य से तीन गुनी कीमत पर बिक रहा है। धान की निरंतर बढ़ रही कीमत के चलते जहां आम जनता पर महंगाई की मार पड़ रही है। लेकिन किसानों के लिए ये सहूलियत की खबर है। 

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खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा कीमतों में बढ़ोतरी भले ही आम जनता के लिए महंगाई का झटका है। लेकिन किसानों को इससे काफी लाभ हो रहा है। धान की बढ़ती मांग और अच्छी कीमतों से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं। आगे हम आपको इस लेख में देश की उन टॉप पांच मंडियों के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं। जहां धान सबसे अधिक कीमत पर बिक रहा है।

धान का भाव 7 हजार के पार पहुंच चुका है 

जैसा की आपको बताया है, कि धान की बढ़ती कीमतें सातवें आसमान पर पहुँच चुकी हैं। बतादें, कि देश की बहुत सारी मंडियों में धान 7 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से तीन गुना अधिक है। वर्तमान में केंद्र सरकार ने धान पर 2203 रुपये प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर रखा है। भारत की तकरीबन समस्त मंडियों में धान की कीमतें MSP से भी ज्यादा हो गई हैं। केंद्रीय कृषि िसान कल्याण मंत्रालय के एगमार्कनेट पोर्टल के मुताबिक, गुरुवार (28 नवंबर) को कर्नाटक की शिमोगा मंडी में धान सबसे बेहतरीन कीमत पर बिका। जहां, धान को 7500 रुपये/क्विंटल का भाव प्राप्त हुआ। 

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न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों की खरीद जारी रहेगी दरअसल, इसी प्रकार महाराष्ट्र की सोलापुर मंडी में धान 6545 रुपये/क्विंटल, कर्नाटक की बंगारपेट मंडी में 6500 रुपये/क्विंटल, उमरेड मंडी में 5400 रुपये/क्विंटल और गुजरात की दाहोद मंडी में 5600 रुपये/क्विंटल के हिसाब से बिका था। किसानों का कहना है, कि इस बार धान सीजन में उन्हें फसलों से बेहद अच्छी कीमत मिली हैं। विगत वर्ष के मुकाबले इस बार शानदार भाव मिलने से कृषकों को लाभ हो रहा है।

बासमती धान को काफी ज्यादा भाव मिल रहा है 

धान सीजन के प्रारंभिक दौर से ही इस बार किसानों को अच्छी कीमत मिली हैं। वहीँ, विगत वर्ष शुरूआत में कीमत इतनी अच्छी नहीं थी। इस बार सबसे शानदार भाव बासमती धान को मिल रहा है। विगत कुछ वर्षों के मुकाबले इस बार भाव 1500 रुपये तक अधिक मिल रहा है। भारतभर की मंडियों की बात करें तो औसत बासमती 3000 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर बिक रहा है।